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काश मैं उस वक्त समझ जाती

काश मैं उस वक्त समझ जाती - ये पंक्ति आपने कई बार लोगों के मुंह से सुनी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सही वक्त पर सही बात समझना इतना मुश्किल क्यों होता है ? बचपन से लेकर अब तक मैंने लोगों को सड़कों पर प्रदर्शन करते देखा है — चाहे वो निर्भया केस हो या कोलकाता रेप केस में। लोग पहले भी सड़क पर उतरे थे , आज भी उतर रहे हैं , और शायद आगे भी ये सिलसिला चलता रहेगा। हमारे देश में हर दिन कोई न कोई बेटी उन दरिंदों की हवस का शिकार बनती है , जो अपने अंदर की आग को शांत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अखबार के पन्नों पर बलात्कार के आंकड़े देखना आसान हो सकता है , लेकिन उन बलात्कारियों को सजा दिलवाना शायद सरकार के लिए उतना ही मुश्किल हो जाता है। हमारे देश में न जाने कितने केस ऐसे हैं जो दबे पड़े हैं , जहां महिलाएं हर दिन उत्पीड़न का सामना करती हैं , लेकिन समझ ही नहीं पातीं कि उनके साथ क्या हो रहा है। आज जब किसी महिला के साथ हुए हादसे के बारे में हम सुनते हैं , तो अपने गुस्से को सोशल मीडिया पर पोस्ट या वीडियो डालकर अपना विरोध जताते हैं , लेकिन असल ज़िन्दगी में शायद हमें ये ज्यादा दिन...

कहानी हर घर की एक जैसी नहीं होती !

कहानी हर घर की एक जैसी नहीं होती! यह एक कथन खुद में ही एक पूरा सवाल है। किसी के घर में सपनों को पंख दिए जाते हैं , तो वहीं कुछ घर ऐसे भी हैं जहां सपने बुनने का भी हक़ नहीं होता। कुछ ऐसी ही कहानी है मेरी दोस्त कंचन (परिवर्तित नाम) की , जिसके सपने तो बहुत थे , लेकिन उन सपनों को पूरा करने की इजाज़त नहीं थी। यह कहानी लगभग 10 साल पहले की है , जब हम दोनों 11 साल के थे। मुझे कभी भी स्कूल जाने की ख़ुशी नहीं रहती थी , लेकिन कंचन के लिए स्कूल जाना एक सपना था। उसे लगता था कि स्कूल ही एक ऐसी जगह हैं जहां वो अपने सपनों को साकार कर सकती है ।   कंचन हमेशा स्कूल का वह बड़ा बैग लेकर आती थी , जिसमें किताबों से ज़्यादा दिन के समय   लौटते हुए घर के राशन की लिस्ट ही हुआ करती थी , और मैं जिसे न सोने से फुरस़त था और न ही खाने से। इतना ही नहीं , बल्कि मेरे स्कूल के बैग में ज्यादातर वह 5 रुपए वाले कुरकुरे और चिप्स ही रहते थे , जिन्हें मैं कक्षा में बैठकर छुपके से कंचन को भी खिलाती और उसका पढ़ाई से ध्यान भटकाती थी। एक दिन स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां पड़ गयी और मैं फिरसे हमेशा की तरह सुबह शाम बिस्तर ...