काश मैं उस वक्त समझ जाती
काश मैं उस वक्त समझ जाती - ये पंक्ति आपने कई बार लोगों के मुंह से सुनी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सही वक्त पर सही बात समझना इतना मुश्किल क्यों होता है ? बचपन से लेकर अब तक मैंने लोगों को सड़कों पर प्रदर्शन करते देखा है — चाहे वो निर्भया केस हो या कोलकाता रेप केस में। लोग पहले भी सड़क पर उतरे थे , आज भी उतर रहे हैं , और शायद आगे भी ये सिलसिला चलता रहेगा। हमारे देश में हर दिन कोई न कोई बेटी उन दरिंदों की हवस का शिकार बनती है , जो अपने अंदर की आग को शांत करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। अखबार के पन्नों पर बलात्कार के आंकड़े देखना आसान हो सकता है , लेकिन उन बलात्कारियों को सजा दिलवाना शायद सरकार के लिए उतना ही मुश्किल हो जाता है। हमारे देश में न जाने कितने केस ऐसे हैं जो दबे पड़े हैं , जहां महिलाएं हर दिन उत्पीड़न का सामना करती हैं , लेकिन समझ ही नहीं पातीं कि उनके साथ क्या हो रहा है। आज जब किसी महिला के साथ हुए हादसे के बारे में हम सुनते हैं , तो अपने गुस्से को सोशल मीडिया पर पोस्ट या वीडियो डालकर अपना विरोध जताते हैं , लेकिन असल ज़िन्दगी में शायद हमें ये ज्यादा दिन...