कहानी हर घर की एक जैसी नहीं होती !
कहानी हर घर की एक जैसी नहीं होती! यह
एक कथन खुद में ही एक पूरा सवाल है। किसी के घर में सपनों को पंख दिए जाते हैं, तो वहीं कुछ घर ऐसे
भी हैं जहां सपने बुनने का भी हक़ नहीं होता। कुछ ऐसी ही कहानी है मेरी दोस्त कंचन
(परिवर्तित नाम) की, जिसके सपने तो बहुत थे,
लेकिन उन सपनों को पूरा करने की इजाज़त
नहीं थी।
यह कहानी लगभग 10 साल पहले की है, जब हम दोनों 11 साल के थे। मुझे कभी भी स्कूल जाने की ख़ुशी नहीं रहती थी, लेकिन कंचन के लिए स्कूल जाना एक सपना था। उसे लगता था कि स्कूल ही एक ऐसी जगह हैं जहां वो अपने सपनों को साकार कर सकती है ।
कंचन हमेशा स्कूल का वह बड़ा बैग लेकर आती थी, जिसमें किताबों से ज़्यादा दिन के समय लौटते हुए घर के राशन की लिस्ट ही हुआ करती थी, और मैं जिसे न सोने से फुरस़त था और न ही खाने से। इतना ही नहीं, बल्कि मेरे स्कूल के बैग में ज्यादातर वह 5 रुपए वाले कुरकुरे और चिप्स ही रहते थे, जिन्हें मैं कक्षा में बैठकर छुपके से कंचन को भी खिलाती और उसका पढ़ाई से ध्यान भटकाती थी।
एक दिन स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां पड़ गयी और मैं फिरसे हमेशा की तरह सुबह शाम बिस्तर पर सोने लगी। लेकिन एक दिन माँ ने कहा कि कब तक ऐसे ही सोती रहोगी बिटिया, कभी तो पढ़ लिया करो! तो मैंने भी जवाब देते हुए माँ से कहा कि कितना ही पढ़ूंगी, आगे चलकर तो ब्याह करके ससुराल ही जाना है। 11 साल की मैं शादी के सपने भी बुनने लगी, और दूसरी तरफ कंचन, जिसके मन में बड़े होकर पढ़ लिखकर एक आईपीएस अधिकारी बनने का सपना था।
एक दिन काफी बोर होने के बाद मैं कंचन के घर की ओर चल पड़ी, मैंने देखा उसके छोटे-छोटे हाथ भारी और बड़े बर्तनों को मांज रहे थे। इतना ही नहीं, बल्कि उसके दो बड़े भाई, श्याम और गोपाल, राजाओं की तरह बिस्तर पर लेटे हुए समोसे और जलेबियों को बड़े चाव से खा रहे थे। फिर मैंने बर्तन की ओर न देखते हुए कंचन से सीधे जलेबियों और समोसे के बारे में पूछा कि तूने खाया? और बचा है क्या? उसने धीरे से कहा नहीं... मैंने भी नहीं खाया! (मैंने उसके बर्तनों की ओर इसीलिए नहीं देखा था क्योंकि वो हमेशा ही ये काम करती थी) फिर क्या मुझे उसके भाईयों पर गुस्सा आ गया और आप तो जानते ही हैं मैं खाने कि कितनी बड़ी शौकीन हूँ, आसान शब्दों में कहे तो मैं लालची बहुत थी। मैंने कंचन के दोनों भाईयों से कहा कि भैया, आपने कंचन को क्यों नहीं खिलाया? अकेले-अकेले क्यों खा रहे हैं आप? पता है, उन्होंने जवाब में क्या कहा? उन्होंने कहा कि लड़कियों का काम है सिर्फ घर का काम करना, न कि स्वादिष्ट खाने का स्वाद चखना। इसके बाद मैंने उनसे कुछ नहीं कहा। कंचन के भाईयों की गलती नहीं थी, क्योंकि समाज में सालों से ये अवधारणाएँ बनती जा रही हैं कि एक लड़की सिर्फ घर के काम करने के ही लायक है।
कंचन के परिवार वालों ने उसके हाथों में कलम थमाने के बजाय उसकी शादी करवाने का विचार कर रहे थे। वो भी किसी ऐसे लड़के के साथ करवाने की सोची जिसे वह जानती भी नहीं थी। 2 सालों बाद जब मैं और कंचन ने 8वीं कक्षा पास की थी के उसके घर वाले उसके लिए रिश्ता पक्का कर आये, कंचन ने जैसे ही ये बात सुनी वैसे ही डर के कारण उसके पसीने छूटने लगे और वह मुझे गले लगाकर ऐसे रोई मानों किसी ने उसकी पूरी ज़िंदगी छीन ली हो। कंचन का ऐसा उदास चेहरा मैंने कभी नहीं देखा था, उसको इस कदर फूट-फूट कर रोते हुए देख मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए थे। उस वक्त मुझे भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करना चाहिए, कंचन को कैसे बचाऊं? बस मन में यही सवाल आ रहा था कि क्या शादी इतना खौफनाक है?
दरअसल,
मैं इससे अनजान थी कि शादी का भी एक समय
होता है, शादी के वक्त मन से उभरे सपनों को उखाड़ फेंक दिया जाता है।
लेकिन ये सब कंचन के बचपन और उसके सपनों को ख़त्म कर रहा था। हालांकि कंचन की शादी
नहीं रुकी। शादी के वक्त उसके सपनों के टूटने की आवाज़ आजतक गूंजती है... शादी के
बाद न कंचन कभी घर वापस आयी और मैंने कभी उससे संपर्क करने की कोशिश की। हालांकि
जाते-जाते कंचन ने मुझे सिर्फ एक ही बात कही "तू मत सहना"! मुझे उसकी
कही ये बात आजतक याद है और हाल ही मैं मुझे दोबारा कंचन से मिलने का मौका मिलेगा, क्योंकि उसके घर पर
उसके मंझले भाई श्याम की शादी है, शायद वो भी आये। 7
साल बाद कंचन कैसी दिखती है और क्या
करती है और क्या वो खुश भी है या नहीं इन सभी सवालों का जवाब मैं अब उससे जानूँगी!
"जहां कंचन का मंझला भाई उससे 5 साल बड़ा था उसकी शादी अब हो रही है और वो कंचन जो सिर्फ आठवीं कक्षा पास करके आगे के पढ़ाई के बारे में सोच रही थी उसके साथ ऐसी न इंसाफी क्यों? क्यों घर का काम सिर्फ स्त्रियों पर थोप दिया जाता है। जब अन्न पूरे परिवार के पेट में जाता है तो सिर्फ झूठी थालियां कंचन जैसी तमाम लड़कियां ही क्यों साफ करें? जहां मेरे घर में मुझे पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था तो वहीं कंचन से किताबें क्यों छीनी गईं? इन सभी सवालों का जवाब देना तो मुश्किल नहीं है लेकिन उन रूढ़िवादी विचारों को लोगों के ज़हन से ख़त्म करना मुश्किल है! इसीलिए कहते हैं हर घर की कहानी एक जैसी नहीं होती!"
यह कहानी लगभग 10 साल पहले की है, जब हम दोनों 11 साल के थे। मुझे कभी भी स्कूल जाने की ख़ुशी नहीं रहती थी, लेकिन कंचन के लिए स्कूल जाना एक सपना था। उसे लगता था कि स्कूल ही एक ऐसी जगह हैं जहां वो अपने सपनों को साकार कर सकती है ।
कंचन हमेशा स्कूल का वह बड़ा बैग लेकर आती थी, जिसमें किताबों से ज़्यादा दिन के समय लौटते हुए घर के राशन की लिस्ट ही हुआ करती थी, और मैं जिसे न सोने से फुरस़त था और न ही खाने से। इतना ही नहीं, बल्कि मेरे स्कूल के बैग में ज्यादातर वह 5 रुपए वाले कुरकुरे और चिप्स ही रहते थे, जिन्हें मैं कक्षा में बैठकर छुपके से कंचन को भी खिलाती और उसका पढ़ाई से ध्यान भटकाती थी।
एक दिन स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां पड़ गयी और मैं फिरसे हमेशा की तरह सुबह शाम बिस्तर पर सोने लगी। लेकिन एक दिन माँ ने कहा कि कब तक ऐसे ही सोती रहोगी बिटिया, कभी तो पढ़ लिया करो! तो मैंने भी जवाब देते हुए माँ से कहा कि कितना ही पढ़ूंगी, आगे चलकर तो ब्याह करके ससुराल ही जाना है। 11 साल की मैं शादी के सपने भी बुनने लगी, और दूसरी तरफ कंचन, जिसके मन में बड़े होकर पढ़ लिखकर एक आईपीएस अधिकारी बनने का सपना था।
एक दिन काफी बोर होने के बाद मैं कंचन के घर की ओर चल पड़ी, मैंने देखा उसके छोटे-छोटे हाथ भारी और बड़े बर्तनों को मांज रहे थे। इतना ही नहीं, बल्कि उसके दो बड़े भाई, श्याम और गोपाल, राजाओं की तरह बिस्तर पर लेटे हुए समोसे और जलेबियों को बड़े चाव से खा रहे थे। फिर मैंने बर्तन की ओर न देखते हुए कंचन से सीधे जलेबियों और समोसे के बारे में पूछा कि तूने खाया? और बचा है क्या? उसने धीरे से कहा नहीं... मैंने भी नहीं खाया! (मैंने उसके बर्तनों की ओर इसीलिए नहीं देखा था क्योंकि वो हमेशा ही ये काम करती थी) फिर क्या मुझे उसके भाईयों पर गुस्सा आ गया और आप तो जानते ही हैं मैं खाने कि कितनी बड़ी शौकीन हूँ, आसान शब्दों में कहे तो मैं लालची बहुत थी। मैंने कंचन के दोनों भाईयों से कहा कि भैया, आपने कंचन को क्यों नहीं खिलाया? अकेले-अकेले क्यों खा रहे हैं आप? पता है, उन्होंने जवाब में क्या कहा? उन्होंने कहा कि लड़कियों का काम है सिर्फ घर का काम करना, न कि स्वादिष्ट खाने का स्वाद चखना। इसके बाद मैंने उनसे कुछ नहीं कहा। कंचन के भाईयों की गलती नहीं थी, क्योंकि समाज में सालों से ये अवधारणाएँ बनती जा रही हैं कि एक लड़की सिर्फ घर के काम करने के ही लायक है।
कंचन के परिवार वालों ने उसके हाथों में कलम थमाने के बजाय उसकी शादी करवाने का विचार कर रहे थे। वो भी किसी ऐसे लड़के के साथ करवाने की सोची जिसे वह जानती भी नहीं थी। 2 सालों बाद जब मैं और कंचन ने 8वीं कक्षा पास की थी के उसके घर वाले उसके लिए रिश्ता पक्का कर आये, कंचन ने जैसे ही ये बात सुनी वैसे ही डर के कारण उसके पसीने छूटने लगे और वह मुझे गले लगाकर ऐसे रोई मानों किसी ने उसकी पूरी ज़िंदगी छीन ली हो। कंचन का ऐसा उदास चेहरा मैंने कभी नहीं देखा था, उसको इस कदर फूट-फूट कर रोते हुए देख मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए थे। उस वक्त मुझे भी कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करना चाहिए, कंचन को कैसे बचाऊं? बस मन में यही सवाल आ रहा था कि क्या शादी इतना खौफनाक है?
"जहां कंचन का मंझला भाई उससे 5 साल बड़ा था उसकी शादी अब हो रही है और वो कंचन जो सिर्फ आठवीं कक्षा पास करके आगे के पढ़ाई के बारे में सोच रही थी उसके साथ ऐसी न इंसाफी क्यों? क्यों घर का काम सिर्फ स्त्रियों पर थोप दिया जाता है। जब अन्न पूरे परिवार के पेट में जाता है तो सिर्फ झूठी थालियां कंचन जैसी तमाम लड़कियां ही क्यों साफ करें? जहां मेरे घर में मुझे पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता था तो वहीं कंचन से किताबें क्यों छीनी गईं? इन सभी सवालों का जवाब देना तो मुश्किल नहीं है लेकिन उन रूढ़िवादी विचारों को लोगों के ज़हन से ख़त्म करना मुश्किल है! इसीलिए कहते हैं हर घर की कहानी एक जैसी नहीं होती!"
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