सुन्दरता एक खोखली दिवार

"सुंदरता" शब्द मात्र नहीं है, यह आज की दुनिया में लोगों की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। हम सभी, चाहे अनजाने में ही सही, सुंदर दिखने और दूसरों को सुंदर नजर आने के लिए अनेक चीज़ों का सामना करने को तैयार हो जाते हैं। अगर आज किसी से पूछा जाए कि जीवनसाथी में क्या चाहिए, तो अधिकतर लोग यही कहेंगे कि हमें एक सुंदर जीवनसाथी चाहिए। सोशल मीडिया के इस दौर में सुंदरता की परिभाषा ही बदल गई है। अगर आप मोटे हैं या आपका रंग गहरा है, तो समाज आपको सुंदर मानने से इंकार कर देता है। यह मैं नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन वीडियोस बताते हैं।

इंस्टाग्राम पर स्क्रॉल करते हुए आपने भी शायद कई बार ऐसे वीडियो देखे होंगे, जो यह दिखाते हैं कि आपकी ज़िंदगी गोरा रंग और अच्छी बॉडी हासिल करने के बाद ही बदल सकती है। लेकिन क्या सच में सुंदरता का यही मतलब है? या इससे भी भयानक कुछ और है? आज हम ऐसे ऐप्स का उपयोग करने लगे हैं, जो हमें वर्चुअल मेकअप के जाल में फंसा रहे हैं। कई ब्यूटी प्रोडक्ट्स और कॉस्मेटिक्स की दुकानें भी हमें गोरा बनाने का खोखला सपना बेच रही हैं। इन सबका नतीजा यह है कि हम अपने असली चेहरे को छोड़कर एक झूठी छवि में बदलते जा रहे हैं। रिजेक्शन, प्यार न मिलने की वजह, और यहां तक कि समाज में स्वीकार्यता तक, इन सबका कारण आज सुंदरता बन चुका है। लोग अब असली अस्तित्व से नहीं, बल्कि पहने हुए नकाब से पहचाने जाने लगे हैं। यही नकाब अब #BEAUTY का नाम पा चुका है। डेटिंग ऐप्स से लेकर सोशल मीडिया तक, गोरा रंग और फिट बॉडी का ही दबदबा है।

हाल ही में यूपी बोर्ड 2024 की 10वीं टॉपर एक लड़की को उसकी मेहनत के लिए सराहा नहीं गया, बल्कि उसकी मूंछों और चेहरे को लेकर ट्रोल किया गया। लेकिन ऐसी आलोचनाओं का क्या मतलब, जब हम किसी की काबिलियत को नजरअंदाज कर केवल उसकी शारीरिक बनावट पर ध्यान केंद्रित करते हैं? क्या काबिलियत की दौड़ में हमेशा सुंदरता ही जीतनी चाहिए?

कई लोगों ने अपने कार्यक्षेत्र में भी सुंदरता के इस पैमाने का सामना किया है, जहां उन्हें सिर्फ इसीलिए रिजेक्ट कर दिया गया क्योंकि वे सुंदर नहीं दिखते थे। क्या सुन्दर न दिखने की वजह से रिजेक्ट होना अब आम बात हो गई है? यह आधुनिकता न सिर्फ शारीरिक बल्कि मानसिक तनाव का भी कारण बनती जा रही है। सुंदर दिखने की इस दौड़ में टेक्नोलॉजी भी शामिल हो गई है। बाजार में ऐसे हज़ारों फोन हैं, जो अपनी कैमरा तकनीक से आपकी सुंदर तस्वीर खींचने का दावा करते हैं। और हम भी, बिना किसी झिझक के, इनका उपयोग कर रहे हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि इस प्रक्रिया में हम अपने असली अस्तित्व को खो रहे हैं?

हमें यह सोचने की जरूरत है कि जो हम हैं, वह क्या हमें स्वीकार नहीं करना चाहिए? मैं यह नहीं कह रही कि हम अपने शरीर का ख्याल न रखें, बल्कि यह कहना चाहती हूँ कि सुंदरता की इस दीवार ने हमें हमारे असली अस्तित्व से दूर कर दिया है। क्या अब हमारा रंग यह तय करने लगा है कि हम किसी के लायक हैं या नहीं? या शरीर की बनावट यह निर्णय करती है कि हम समाज का हिस्सा हो सकते हैं या नहीं? मेरा कहना है कि सुन्दरता उस स्वरूप की परिभाषा है जहां इऩ्सान अपने असली अस्तित्व को फक्र हो कर स्वीकारे न कि बनावटी चाहे वो कैसा भी क्यों न दिखता हो। आपकी क्या राय है ज़रूर बताएं।

लेख: निकिता मिश्रा

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