क्या सोशल मीडिया हमें जोड़ता है या दूर करता है?

क्या सोशल मीडिया हमें जोड़ता है या दूर करता है? यह सवाल नहीं, खुद में ही एक जाल है, जिसमें जितना फंस गए, उससे बाहर निकलना उतना ही मुश्किल है। सोशल मीडिया मानो आज हमारी ज़िन्दगी का सिर्फ़ हिस्सा नहीं, बल्कि पूरी ज़िन्दगी बन चुका है।
सुबह हो या शाम, हमारे छोटे-छोटे पल सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द बीतते हैं। जहां पहले के समय में सुबह की चाय अख़बार पढ़ते-पढ़ते पी जाती थी, वहीं आज रील देखकर हम चाय की मिठास का आनंद लेते हैं। जैसे बिना तेल के लौ नहीं जलती, वैसे ही फोन और फेसबुक पर देखे गए लंबे वीडियो के बिना हमारा दिन अधूरा लगता है।

हम जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहां सोशल मीडिया ने हमें दुनिया में बढ़ती आधुनिकता से परिचित कराया है, वहीं इसने हमें खुद से भी दूर किया है। हम दूर कैसे हुए? क्यों हुए? इन सभी सवालों का जवाब तो हम खुद ही जानते हैं। अब हमें किसी ग्रंथ की ज़रूरत नहीं जो हमें हमारी खामियां बताए, क्योंकि अब हम ग्रंथ पढ़ने से ज़्यादा यूट्यूब के वीडियो पर यकीन करते हैं।


सोशल मीडिया की बुराई क्या करूं, जब उस बुराई को बुरा बनने का मौका भी हमने खुद दिया। सोशल मीडिया पर समाज को दूषित करने के लिए इतने विष फैलाए जा रहे हैं कि जिसकी दवा इंसानों के बनाने की बात नहीं रही। सोशल मीडिया ने हमें खुद से तो दूर किया ही है, साथ ही हमें ऐसे व्यवहारों की ओर धकेल दिया है जो शर्मनाक हैं।

साइबर क्राइम हो या फेक आईडी बनाकर लोगों की इज़्जत उछालना — दोनों ही काम यहां बेखौफ़ किए जाते हैं। अधर्म को बढ़ावा देना हो या दूसरों पर अपशब्दों की बौछार करना, हम किसी में पीछे नहीं हैं। इन सबके बावजूद हम दोष सिर्फ उस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का देते हैं, जिसमें तो भावनाएं भी नहीं हैं।
तो क्या सच में सोशल मीडिया ने हमें दूर किया है, या हमने खुद को पहचानने से ही इनकार कर दिया है?
मेरा यह सवाल आप सभी से है — सोचना ज़रूर और जवाब भी देना।


सोशल मीडिया सिर्फ एक अभिशाप नहीं है, बल्कि यह वह माध्यम है जिसकी सहायता से हम खुद को भी पहचान पाते हैं। आज सोशल मीडिया पर रहकर लोग लाखों की कमाई कर रहे हैं।
खाना बनाना हो या मुफ्त में कोई कोर्स सीखना हो, इन सबके लिए सोशल मीडिया हमेशा से एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है। सोशल मीडिया सिर्फ इन्हीं चीज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वह मंच है जहां आप अपने विचार रख सकते हैं, किसी अन्याय के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद कर सकते हैं।
इस पर रहकर आप दुनिया की उन तमाम चीज़ों को देख पाते हैं, जो पहले बंद दीवारों के पीछे कहीं छुप सी जाती थीं। सोशल मीडिया वह प्लेटफ़ॉर्म है जो दुनिया तक अपने टैलेंट को पहुँचाने का मौका देता है।

फर्क बस हमारे फैसले में है — कि हम क्या चुनते हैं। आज सोशल मीडिया ने न सिर्फ लोगों की ज़िन्दगी संवारी है, बल्कि उन्हें जीने का एक नया ज़रिया भी दिया है।


निकिता मिश्रा.... 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पक्ष-विपक्ष की राजनीति में क्यों फसे आम जनता?

सुन्दरता एक खोखली दिवार